राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे।।
अंजन उतपति, ॐ कार, अंजन मांगे सब विस्तार,
अंजन ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, अंजन गोपी संगि गोविंद रे।।
अंजन वाणी, अंजन वेद, अंजन किया नाना भेद,
अंजन विद्या, पाठ-पुराण, अंजन वो घट घटहिं ज्ञान रे।।
अंजन पाती, अंजन देव, अंजन ही करे, अंजन सेव,
अंजन नाचै, अंजन गावै, अंजन भेष अनंत दिखावै रे।।
अंजन कहों कहां लग केता? दान-पुनि-तप-तीरथ जेथा,
कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छाड़ि निरंजन लागे।।
— गुरु कबीर साहब