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भजन: पानी में मीन पियासी

पानी में मीन पियासी, मोहे सुन सुन आवत हासी।।

आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी।।

जैसे मृगा नाभि कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी।।

जल बिछ कमल, कमल बिछ कलियाँ, तापर भँवर निवासी।।

सो मन बस त्रेलोक भयो है, यति सती सन्यासी।।

जाको ध्यान धरे विधि हरिहर, मुनि जन सहस अठासी।।

सो तेरे घट माहि बिराजे, परम पुरुष अविनाशी।।

हैं हाजिर तोहि दूर दिखावे, दूर की बात निरासी।।

कहैं कबीर सुनों भाई साधो, गुरु बिन भरम न जासी।।

— गुरु कबीर साहब