मन मस्त हुआ तब क्यों बोले।।
हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार बार वाको क्यों खोले।।
हलकी थी तब चढ़ी तराजू, पूर भई तब क्यों तोले।।
सुरत कलारी भइ मतवारी, मदवा पी गई बिन तोले।।
हंसा पाये मान सरोवर, ताल तलैया क्यों डोले।।
तेरा साहेब है घट माहीं, बाहर नैना क्यों खोले।।
— गुरु कबीर साहब