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भजन: घूँघट के पट खोल रे

घूँघट के पट खोल रे, तुझे पिया मिलेंगे।।

घट घट में तेरे साईं बसत है, कटु वचन मत बोल रे।।

धन जोबन का गर्व न कीजै, झूठा पंच रंग चोल रे।।

शून्य महल में दिया जलत है, आशा से मत डोल रे।।

जोग जुगत से रंग महल में, पिया पाये अनमोल रे।।

कहैं कबीर आनन्द भयो है, बाजत अनहद ढोल रे।।

— गुरु कबीर साहब